Hazrat Sayyed Haji Faizu Shah Warsi (RA)

जीवन परिचय

सरकार आलम पनाह (वारिसे पाक) के खादिम ख़ास हज़रत सैय्यद फैज़ू शाह वारसी रह.
तारीखे विलादतः किबला हज़रत सैय्यद फैज़ू शाह वारसी की पैदाइश दिनांक 28 मार्च सन् 1827 ई0 में आपके आबाई वतन मौज़ा बेहमा ज़िला सीतापुर में हुई आपके पिता का नाम श्री मुन्नू मियाँ था।

सैय्यद रमज़ान अली शाह गाँव के निहायत संजीदा आदमी थे जिनका आबाई पेशा खेती था। फ़ैज़ अहमद उर्फ फैज़ू शाह का ध्यान बचपन से घरेलू काम में नहीं लगता था। उनका रूझान दुनिया से कुछ अलग ही था कुछ दिनों के बाद आप अपने ननिहाल बनेहरा बीरबल चले आये जो सीतापुर जिलें में वाके है ये बेहया से तकरीबन एक मील की दूरी पर है ये शुरू से ही नमाज़ रोज़े के पाबन्द थे। उन्होंने 20 वर्ष की आयु में पैदलं हज किया। इह दिनस्सिरातल मुस्तकीमा सिरातल्लज़ीना अनअमता अलैहिम तरजुमा:- ऐ अल्लाह हमें उन लोगों के रास्ते पर चला जिन लोगों के रास्ते पर तूने इनआम नाजिल किया था जिनको इनआम से नवाज़ा। सूरे फातिहा की इस आयत पर बड़ा गौर करके वर्ष 1856 ई. में फैंजू शाह वारसी घर से बगैर बताये निकल पड़े और तलाशे पीर विभिन्न जगहों जैसे अजमेर, कलियर, देहली, बम्बई, पानीपत की मजारों की ज़ियारत करते हुए पैदल सफर करके बहराइच शरीफ हज़रत सै. मसऊद ग़ाज़ी रह. के आस्ताने पर हाज़िर हुए हर जगह की तरह यहाँ पर भी वहाँ के ख़ादिम से अपनी ख्वाहिश ज़ाहिर करते हुए अर्ज़ किया कि आप मुझको मुरीद करके अपना बना लें और मुझे तालीम दें ताकि में हिदायत वाला रास्ता पा सकूँ क्योंकि में तलाशे पीर दरबदर भटक रहा हूँ। वहाँ के ख़ादिम ने उनकी बात सुनी और मुस्कुरा कर जवाब दिया बेटे यह... Read More


लेखक के बारे में

हज़रत ख़लील वारिस वारसी साहब

मेरा जन्म 5 जुलाई सन् 1960 ई0 में मुहल्ला माही बाग शाहाबाद जिला हरदोई में हुआ। सन् 1962 ई0 में पिताजा का स्थानान्तरण तहसील बिलग्राम शरीफ जिला हरदोई हो गया। मैंने बिलग्राम शरीफ में ही कक्षा 9 उत्तीर्ण किया सन् 1972 ई0 में मैं दादी की मृत्यु के बाद अपने दादा जान हज़रत शाहिद अली शाह वारसी की सेवा में देवा शरीफ आ गया। मेरी शिक्षा दीक्षा देवा शरीफ में आरम्भ हुई। शिक्षा प्राप्त करने के साथ ही साथ मैं अपने दादा जान की सेवा करने लगा। सन् 1974 ई0 में मेरी मुलाकात मास्टर महफूज़ अहमद से हुई मित्रता बढ़ती गई और मैंने उनकी सहायता से इण्टर की परीक्षा के साथ ही साथ अदीब कामिल और मुन्शी की परीक्षाएं उत्तीर्ण की सन् 1975 से सन् 1979 ई0 तक मेंने श्री डाक्टर हसन अली बी.यू. एम. एस. के दवाखाने में कम्पाउन्डर के स्थान पर कार्य किया। डाक्टर साहब हिकमत भी बड़ी अच्छी जानते थे। मैंने उनसे भिन्न-भिन्न रोगों की जानकारी ली तथा उनसे इलाज का उपाय सीखा। इसी, बीच हमको कवि बनकर कविता कहने का शौक बढ़ा मैंने शेर लिखना आरम्भ किया और अपने शेरों की इसलाह हज़रत मौलाना इसरार वारसी से ली। मौलाना ने हमारा तख़ल्लुस जाम वारसी रखा और इसलाह के साथ ही साथ हमारी बड़ी हौसला अफ़ज़ाई फ़रमाई और दम कदम हमारी हर तरह से मदद् फरमाई। हमें कई जलसों और मुशाएरों में अपने साथ ले गये और हमको कलाम पढ़ने का मौका दिलाया। जनाब समी सिद्दीकी, जनाब मुइज़ उस्मानी, जनाब वसी मातवी, जनाब सहेर बाराबंकवी, ये शुअरा कराम भी हज़रत मौलाना इसरार अहमद साहब से इसलाह लेते थे। हज़रत मौलाना के साथ मुशाएरों में शिरकत करते थे।
जनाब मास्टर महफूज़ अहमद साहब ने मार्च 1982 ई0 में मेरा रुझान टीचरी की तरफ कराया। मेरा शौक भी बढ़ा मेंने 7 मार्च 1982 में ही मदरसा का दरिया गुलशने वारिस में एक प्रार्थना पत्र दिया मरहूम ताहिर अली कादरी ने उस प्रार्थना पत्र को स्वीकार करके मुझे अपने मदरसे में 1-7-1982 ई0 मदरसे में मोलवी की जगह दे दी। मैंने 30-6-83 तक मदरसे में मोलवी का कार्य किया। सन् 1983 में ही मेरा ध्यान मान्टेसरी स्कूल की तरफ गया मैंने जनता जूनियर हाई स्कूल के प्रबन्धक श्री शफ़ीक अहमद साहब वारसी को एक प्रार्थना पत्र दिया महानुभाव प्रबन्धक श्री शफ़ीक अहमद साहब वारसी ने प्रार्थना पत्र को स्वीकार करके मुझे अपने विद्यालय में अध्यापक की जगह दे दी। मैंने 31 अगस्त 1988 तक कार्य किया। पहली सितम्बर 1988 को स्कूल से त्यागपत्र देकर बिलग्राम शरीफ आ गया और यहाँ किबला वालिद साहब की कोशिश से मैंने लगभग 6 वर्ष तहसील बिलग्राम शरीफ में संग्रह अमीन के पद पर कार्य किया। इसके पश्चात 9 दिसम्बर 1994 से मैं प्राइमरी स्कूल में उर्दू टीचर के स्थान पर कार्य कर रहा हूँ।
वैसे सरकार आलम पनाह के ख़ादिम ख़ास हज़रत सैय्यद हाजी फ़ैजू शाह वारसी का नामे नामी और उनका ज़िक्र लगभग हर वारसी मसलक की किताबों में किया गया है मगर वह अत्यधिक कम हैं। मेंने इस बात की आवश्यकता समझी कि हज़रत सैय्यद हाजी फैजू शाह वारसी के कछ वाक्यियात लिखे जायें वर्हीं पर उनके भतीजे हज़रत शाहिद अली शाह वारसी रह० का नाम नामी भी मसलके वारसी और फुकराये वारसी में एक अहेम मरतबा रखता है क्योंकि हज़रत शाहिद अली शाह वारसी ने हज़रत फैजू शाह वारसी के विसाल के बाद ख़ादिम ए खास के फ़राएज़ आस्ताना ए वारिस पाक पर अन्जाम दिये और अपनी पूरी ज़िन्दगी आस्ताना आलिया पर ही रहकर खिदमते वारिस में गुज़ारी इसलिए वाकियाते फैज शाह के साथ ही साथ हज़रत शाहिद अली शाह वारसी के भी हालात ए ज़िन्दगी लिखे गये हैं।
अलहकीर:- हज़रत ख़लील वारिस वारसी साहब 31 जनवरी 2004

हज़रत सैय्यद फैज़ू शाह वारसी रह. की चौथी पीढ़ी से
हज़रत ख़लील वारिस वारसी साहब